Kabir Sagar Ka Arth कबीर सागर का सरलार्थ
# कबीरसागर_का_सरलार्थPart284 जीव धर्म बोध पृष्ठ 13 से 16 तक काम (sex) के अवगुण बताए हैं। इनमें कुछ वाणी छोड़ी गई हैं, कुछ जोड़ी गई हैं। यथार्थ ज्ञान संत गरीबदास जी ने बताया है जो संत गरीबदास जी की अमृतवाणी में ‘‘नारी के अंग‘‘ में लिखी हैं। इस जीव धर्म बोध में केवल नारी को दोषी बताया है। यह कबीर पंथियों का गलत नजरिया रहा है जिन्होंने कबीर जी के ग्रन्थ का नाश किया है। जो घर त्यागकर या तो आश्रमों में रहते थे या विचरण करते थे। जिन्होंने विवाह नहीं किया था, उन्होंने अपने आपको उत्तम सिद्ध करने के लिए एकतरफा वाणी लिखी हैं जो नारी पक्ष की वाणी थी, वे काट दी गई हैं। संत गरीबदास जी ने अपनी वाणी में परमेश्वर कबीर जी की विचारधारा लिखी है। संत गरीबदास जी की वाणी - कामी नर के अंग से गरीब, कामी कर्ता ना भजै, हिरदै शूल बंबूल। ज्ञान लहरि फीकी लगै, गये राम गुण भूल।।1 गरीब, कामी कमंद चढै नहीं, हिरदै चंचल चोर। जाका मुख नहीं देखिये, पापी कठिन कठोर।।2 गरीब, कामी तजै न कामना, अंतर बसै कुजान। साधु संगति भावै नहीं, जुगन जुगन का श्वान।।3 गरीब, कामी तजै न कामना, हिरदा जाका बंक। जमपुर निश्चय जायगा, ज्ञानी मिलो असंख...