कबीर साहेब की मगहर लीला

आज से लगभग 600 वर्ष पहले काशी की धरती पर अवतार  हुआ कबीर परमेश्वर का!

वही कबीर साहेब जिन्हें आज दुनिया एक साधारण कवि और एक धानक जुलाहे के रुप में जानती है!

परन्तु वास्तविकता इस से भिन्न हैं, 

कबीर साहेब का अवतार सन् 1398 मे काशी नगर के लहरतारा नामक तालाब में कमल के फुल पर हुआ था!

कमल के फुल से कबीर जी को नीरू व नीमा नामक एक निःसंताध ब्राह्मण दम्पति उठा कर ले गये थे और उनका पालन पोषण किया! 

कबीर साहेब तो आये ही जिवो का उद्धार करने थे अतः उन्होंने अपने बाल्यावस्था से लेकर मरणोपरांत तक अनेक लिलाएँ की!

उन में से एक लीला है 'मगहर में शरीर त्यागने की' जहाँ कबीर साहेब जी अद्भूत लीलाएँ दिखाई !





मगहर में कबीर साहेब ने की अद्भुत लीला!

मगहर में कबीर साहेब के सशरीर सतलोक जाने के बाद उनके हिन्दू और मुस्लिम शिष्यों के बीच विवाद हो गया।

मगहर के राजा बिजली खाँ पठान और बनारस के राजा बीर सिंह बघेल के बीच कबीर साहेब के अंतिम संस्कार को लेकर बहुत मतभेद हुआ।

लेकिन कबीर साहेब के जाने के बाद चादर के नीचे उनके शरीर के बदले केवल फूल मिले।

उसके बाद दोनों धर्म के लोगों ने आधे आधे फूल बाँट लिए।



मगहर लीला

मगहर रियासत के अकाल प्रभावित स्थान में गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुष भी बारिश करवाने में नाकाम रहे थे।

लेकिन परमात्मा कबीर जी ने वहां बारिश करवाकर दिखा दी थी और साबित कर दिया कि वही जगत पालनहार हैं।



कबीर परमात्मा मगहर से सशरीर सतलोक गए थे!


"जिंदा जोगी जगत् गुरु, मालिक मुरशद पीर।
दहूँ दीन झगड़ा मंड्या, पाया नहीं शरीर।।"

परमात्मा कबीर जी के शरीर को प्राप्त करने के लिए दोनों ही दीन, हिंदू और मुसलमान आपस में झगड़े की तैयारी करके मगहर आए थे लेकिन जब शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल मिले तो दोनों आपस में लिपट लिपट कर रोने लगे।



परमात्मा कबीर जी के मगहर से सशरीर जाने के प्रमाण को मलूक दास जी भी प्रमाणित करते हुए कहते हैं:-

"काशी तज गुरु मगहर आए, दोनों दीन के पीर,
कोई गाड़े कोई अग्न जरावे, ढूंढा ना पाया शरीर ।"

"चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।"



परमात्मा का मगहर से सशरीर सतलोक


पंडितों ने गलत मान्यता फैलाई थी की कि काशी में मृत्यु होने से मुक्ति मिल जाती है और मगहर में मृत्यु होने से गधा बनते हैं।

लेकिन कबीर साहेब का मानना था कि अगर काशी में ही मुक्ति होती है तो जीवन भर राम-नाम जपने और ध्यान-साधना करने की क्या आवश्यकता।

इसलिए कबीर साहेब काशी से मगहर जा पहुँचे।

कबीर साहेब ने अपनी वाणी में भी कहा है की,

"लोका मति के भोरा रे,
जो काशी तन तजै कबीरा, तौ रामहि कौन निहोरा रे"


मगहर से सशरीर सतलोक गमन 

कबीर परमेश्वर ने हिन्दू धर्मगुरुओं के भ्रम को तोड़ा। जो ये कहा करते थे कि जो मगहर में मरता है वह गधा बनता है और काशी में मरने वाला स्वर्ग जाता है।

इस भ्रम निवारण के लिए कबीर साहिब जी ने मगहर से सशरीर सतलोक गमन किया और उनके शरीर के स्थान पर चादर पर सुगंधित फूल पाए गए।

"तहां वहां चादरि फूल बिछाये, सिज्या छांडी पदहि समाये।
दो चादर दहूं दीन उठावैं, ताके मध्य कबीर न पावैं।।"



कबीर परमेश्वर मगहर से सशरीर सतलोक गए !

उनके शरीर के स्थान पर सुगंधित फूल पाए गए जो कबीर परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार दोनों धर्मों ने आपस में लेकर मगहर में 100 फुट के अंतर से एक-एक यादगार बनाई जो आज भी विद्यमान है।

यह दोनों धर्मों हिंदुओं और मुसलमानों में आपसी भाईचारे व सद्भावना की एक मिसाल का प्रमाण है।



काशी के ब्राह्मणों ने गलत अफवाह फैला रखी थी कि जो काशी में मरता है स्वर्ग जाता है और जो मगहर में शरीर छोड़ता है वह गधे का जन्म पाता है।

कबीर परमेश्वर जी मनमाने लोकवेद का खंडन करने के लिए मगहर में हजारों लोगों के सामने सशरीर गये!

शरीर की जगह फूल मिले और भविष्यवाणी कर बताया कि मैं स्वर्ग और महास्वर्ग से ऊपर अविनाशी धाम सतलोक जा रहा हूँ।



राम और अल्लाह एक ही हैं!

600 साल पहले कबीर साहेब ने मगहर में शरीर छोड़ने से पहले सभी लोगो को अपना ज्ञान समझाते हुए कहा कि राम और अल्लाह एक ही हैं सभी धर्मों के लोग एक परमपिता की संतान है।




मगहर लीला

आदरणीय गरीबदास जी महाराज ने परमात्मा कबीर साहेब की मगहर लीला(सशरीर सतलोक गमन) का वर्णन करते हुए कहा है कि,

"देख्या मगहर जहूरा सतगुरु, देख्या मगहर जहूरा हो,
कांशी मैं कीर्ति कर चाले, झिलमिल देही नूरा हो।"



कबीर परमात्मा की मगहर लीला


आज भी मगहर में कबीर साहेब जी के दिखाए गए मार्ग पर चलते हुए हिन्दू और मुसलमान आपस में बहुत प्यार से रहते हैं।



मगहर में सूखी नदी में पानी बहाना


मगहर के समीप एक आमी नदी बहती थी।

वह भगवान शंकर जी के श्राप से सूख गई थी। पूर्ण ब्रह्म कबीर साहेब ने उसी समय अपनी शक्ति से उसमें पानी भर चलाया।

आज भी आमी नदी प्रमाण के तौर पर बह रही है।

फिर परमेश्वर कबीर साहेब हजारों लोगों के सामने से सशरीर सतलोक गये।



"मगहर का मौहल्ला कबीर करम"

कबीर परमेश्वर जी ने मगहर रियासत में 14वीं शताब्दी में पड़े भीषण अकाल को अपनी समर्थ शक्ति से टालकर वर्षा करके सबको जीवनदान दिया।

हजारों हिंदू-मुसलमानों ने उपदेश लिया। एक 70 वर्षीय निःसंतान मुसलमान दंपती को पुत्र होने का आशीर्वाद दिया। 

वर्तमान में उस व्यक्ति का एक पूरा मौहल्ला बना हुआ है, नाम है "मौहल्ला कबीर करम"



मगहर में परमात्मा का चमत्कार!

कबीर परमेश्वर जी के अद्भुत चमत्कार जैसे अकाल से बचाना, सूखी आमी नदी बहाना, सशरीर सतलोक जाना आदि देखकर तथा उनके‌ द्वारा दिए तत्वज्ञान का‌ अनुसरण करके मगहर के सर्व हिंदू-मुसलमान आज भी विशेष प्रेम से रहते हैं।

आज तक उनकी धर्म के नाम पर कोई लड़ाई नहीं हुई।



मगहर में हिन्दू मुसलमानों के बीच का युद्ध टाल दिया था परमात्मा ने।

हिन्दू मुसलमानों में यह झगड़ा था कि वे अपने गुरु कबीर परमेश्वर जी का अंतिम संस्कार अपनी-अपनी विधि से करना चाहते थे।

कबीर जी द्वारा मगहर में शरीर त्यागने के बाद उनके शरीर की जगह सुगन्धित पुष्प मिले जिस वजह से हिन्दू मुस्लमान का भयंकर युद्ध टला था। ष

वे सभी एक दूसरे के सीने से लग कर रोये थे जैसे किसी बच्चे की माँ मर जाती है।

यह समर्थता कबीर परमेश्वर जी ने दिखाई जिससे गृहयुद्ध टला।



मगहर में भाईचारे की मिसाल!

हिन्दू व मुसलमानों के बीच धार्मिक सामंजस्य और भाईचारे की जो विरासत कबीर परमात्मा छोड़कर गए हैं उसे मगहर में आज भी जीवंत रूप में देखा जा सकता है।

मगहर में जहाँ कबीर परमेश्वर जी सशरीर सतलोक गए थे, वहां हिंदू-मुसलमानों के मंदिर और मजार 100-100 फुट की दूरी पर बने हुए हैं।

"कबीर, विहंसी कहयो तब तीनसै, मजार करो संभार।
हिन्दू तुरक नहीं हो, ऐसा वचन हमार।"


"कबीर, क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा।
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा।।"

मगहर में मरने वाला गधा बनता है इस भ्रम का खंडन करते हुए कबीर परमात्मा ने बताया कि जिसके हृदय में परमात्मा का वास हैं वह चाहे काशी में मरे या मगहर में उसकी मुक्ति निश्चित है।

यदि काशी में तन छोड़ने से मुक्ति होती है तो भगवान को भजने की क्या आवश्यकता थी?


कबीर परमात्मा द्वारा शिवजी के श्राप से सूखी नदी में जल बहाना


मगहर में पहुंचते ही परमात्मा कबीर जी ने जब बहते पानी में स्नान करने की इच्छा जताई तो बिजली खां ने कहा कि यहां एक आमी नदी है जो शिवजी के श्राप से सूखी हुई है। 

परमात्मा कबीर जी ने नदी के किनारे पर पहुंचकर उंगली के इशारे से वर्षों से सूखी नदी में जल प्रवाहित कर दिया ।



हिंदू राजा बीर सिंह बघेल और मुस्लिम राजा बिजली ख़ाँ पठान को कबीर परमात्मा ने सतलोक जाने से पहले कहा जो मेरे जाने के बाद मिले आधा आधा बांट लेना।

दो चद्दर और सुगंधित फूल मिले, परमात्मा का शरीर नहीं मिला था। 

"बीरसिंघ बघेला करै बीनती , बिजली खाँ पठाना हो ।
दो चदरि बकसीस करी हैं , दीनां यौह प्रवाना हो ।।"


परमात्मा कबीर जी चार दाग से न्यारे हैं!

"चदरि फूल बिछाये सतगुरु , देखें सकल जिहाना हो ।
च्यारि दाग से रहत जुलहदी , अविगत अलख अमाना हो ।।"

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