कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा ?

कैसे शुरू हुई कांवड़ यात्रा ? 
          - फायदा और नुकसान 

कावड़ यात्रा शिव के भक्तों का एक वार्षिक तीर्थ है, जिसे करने वाले श्रद्धालुओं को कांवड़िया या "भोले" के नाम से जाना जाता है,


हरिद्वार, गौमुख और गंगातट के जो हिंदू तीर्थस्थान हैं आदि से गंगा नदी के पवित्र जल को लाखों श्रद्धालु इकट्ठा करते हैं और इसे सैकड़ों मील दूर तक अपने स्थानीय शिव मंदिरों या महादेव और औघड़नाथ मंदिरों, काशी विश्वनाथ, बैद्यनाथ, और महादेवघरों में प्रसाद के रूप में वितरित करने के लिए ले जाते हैं।

इस क्रिया में श्रावण मास में लाखों की तादाद में कांवड़िये सुदूर स्थानों से पदयात्रा करके गंगा जल से भरी कांवड़ लेकर आते है और श्रावण की चतुर्दशी के दिन उस गंगा जल से शिव मंदिरों में शिव जी का अभिषेक किया जाता है। 

इसके आधार पर, कांवड़ धार्मिक प्रदर्शनों की एक शैली को संदर्भित करता है, जहां से श्रद्धालु पवित्र गंगा नदी से पानी ले जाते हैं।  



यद्यपि कांवड़ का ग्रंथों में एक संगठित उत्सव के रूप में उल्लेख नहीं है, लेकिन यह घटना निश्चित रूप से 19वीं सदी की शुरुआत में हुई होगी जब अंग्रेजी यात्रियों ने उत्तर भारतीय मैदानों में अपनी यात्रा के दौरान कई स्थानों पर कांवड़ तीर्थयात्रियों को देखा। 

यह यात्रा 19 के दशक के उत्तरार्ध तक कुछ संतों और पुराने भक्तों द्वारा चलाया गया एक छोटा सा मामला हुआ करती थी, जब इसने लोकप्रियता हासिल करना शुरू कर दिया।   

आज, हरिद्वार में विशेष रूप से कांवड़ तीर्थयात्रा भारत की सबसे बड़ी वार्षिक धार्मिक सभा बन गई है, जिसमें 2010 और 2011 की घटनाओं में अनुमानित 1 से 2 करोड़ तक प्रतिभागी हैं।



इस यात्रा में आसपास के राज्यों दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, बिहार, ओडिशा और कुछ झारखंड, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश से श्रद्धालु आते हैं। 

सरकार द्वारा भारी सुरक्षा उपाय किए जाते हैं और तो और दिल्ली-हरिद्वार राष्ट्रीय राजमार्ग पर यातायात कुछ अवधि के लिए मोड़ दिया जाता है। 

लेकिन विचार करें!!

(1) क्या कांवड़ यात्रा गीता जी और वेदों के अनुसार लाना व ले जाना सही हैं?

(2) कांवड़ यात्रा से पुण्य प्राप्त हो रहा है या पाप?

(3) क्या शिव जी की भक्ति मात्र से पूर्ण मोक्ष और इस काल के लोक में सर्व सुख संभव है?




कांवड़ यात्रा को लेकर समाज में आपस में ही मतभेद है ; जैसे 👇👇

कांवड़ यात्रा का प्रारंभ कैसे, किसने और क्यों किया?

कुछ विद्वानों का मानना है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने उत्तर प्रदेश के बागपत के पास स्थित ‘पुरा महादेव’का कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था।

वहीं कुछ विद्वानों का कहना है कि सर्वप्रथम त्रेतायुग में श्रवण कुमार ने अपने माता पिता के साथ पहली बार कांवड़ यात्रा की थी। 

कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कावडिया थे। उन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कावड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।

जबकि हिंदू पुराणों में कांवर यात्रा सागर के मंथन से संबंधित है।  जब अमृत से पहले जहर बाहर आया और दुनिया उसकी गर्मी से जलने लगी तो भगवान शिव ने जहर को स्वीकार किया। 

समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए।

लेकिन, इसे साँस लेने के बाद वह जहर की नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे।  

शिव को विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त कराने के लिए उनके अनन्य भक्त रावण ने त्रेता युग में ध्यान किया।

तत्पश्चात कावड़ में जल भरकर रावण ने 'पुरा महादेव' स्थित शिवमंदिर में शिवजी का जल अभिषेक किया। इससे शिवजी विष के नकारात्मक प्रभावों से मुक्त हुए और यहीं से कावड़ यात्रा की परंपरा का प्रारंभ हुआ।
 
वहीं कुछ मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन से निकले हलाहल के प्रभावों को दूर करने के लिए  देवताओं ने शिव पर पवित्र नदियों का शीतल जल चढ़ाया था। सभी देवता शिवजी पर गंगाजी से जल लाकर अर्पित करने लगे। सावन मास में कावड़ यात्रा का प्रारंभ यहीं से हुआ।


एक यात्रा के बारे में इतनी भ्रांतियाँ देख कर इस में श्रद्धा कम और अंध विश्वास अधिक प्रतीत होता हैं!

जैसे कि श्री शिवमद् देवी भागवत के 3 स्कंद पृष्ठ नम्बर 123 पर विष्णु जी माता दुर्गा जी से स्वयं कह रहे है कि " मैं, ब्रह्मा और शंकर आप की कृप्या से ही उत्पन्न हुऐ हैं और हमारा तो जन्म व मरण भी होता हैं!"

तो यहाँ विचार करने वाली बात है कि जब ब्रह्मा जी, विष्णु जी और शिव जी की जन्म व मृत्यु हो रही हैं तो उन्हें सुख कैसे हो सकता है?



और उनकी भक्ति करने वाले अनुयायी तो फिर कभी मोक्ष प्राप्त नहीं कर सकते तथा न ही कभी सुखी रह सकते!

उन्हें मिलने वाले सुख तो उनके प्रारब्ध में की गई भक्ति कमाई का ही परिणाम हैं!

अर्थात् कांवड़ ले जाने वाले श्रद्धालु केवल देखा देखी की भक्ति ही कर रहे हैं!

क्योंकि कांवड़ यात्रा के दौरान पुण्य कम और पाप ज्यादा लगते है!

श्रावण मास की वर्षा के कारण असंख्य छोटे छोटे जीव जंतु धरती से बाहर निकल आते हैं जो कांवड़ियों के पैरों तले आ जाने से मारे जाते हैं और उनका पाप कांवड़ियों के ही लेखे लिखा जाता हैं!

इस के अलावा कांवड़ियों का नशा करना, हुक्का, चिलम, भांग, तम्बाकू का सेवन करना और स्त्रियों के साथ बदसलुकी करना जैसी खबरों से मन में ये सवाल पैदा होता है कि क्या ये भक्ति हैं? 
क्या इस भक्ति से मोक्ष संभव है?

ये भक्ति तो शास्त्र विरूद्ध जान पडती हैं

और गीता जी अध्याय 6 श्लोक 46 में भी कहा है कि "शास्त्र विरूद्ध साधना करने वाले कर्मयोगी से शास्त्रविद् योगी श्रेष्ठ है।"



जब कांवड़ यात्रियों की यात्रा के दौरान दुर्घटनाअों में मृत्यु हो जाती हैं तब शिव जी उनकी रक्षा नहीं कर पाते हैं तो मोक्ष प्राप्ति तो बहुत दूर की बात जान पडती है!

तो क्या कोई भक्ति विधि सही नहीं है?

नहीं, ऐसा नहीं है! 

कबीर साहेब जी जो काशी में अवतरित हुए थे जी की वाणियों से हमें सही भक्ति मार्ग और मोक्ष प्राप्ति का ज्ञान होता हैं! 

जैसे कबीर साहेब जी ने तीर्थ यात्रियों के लिये अपनी वाणी में कहा है कि

"कबीर,पृथ्वी ऊपर पग जो धारे,
 करोड़ जीव एक दिन में मारे ।।"

अर्थात् जो जीव पृथ्वी के ऊपर कदम रखते है तो एक दिन में करोड़ जीवो को मार देते है!

जो गंगा नदी में जा मल मल कर स्नान करते हैं तो पानी में स्थित सूक्ष्म जीवों की भी हत्या कर देते हैं!

कबीर साहेब जी कहते हैं कि बिना गुरु के ये सब क्रियाऐं बिल्कुल निष्फल हैं!

और गीता जी में भी प्रमाण है कि "पूर्ण ज्ञान जो मोक्षदायक है किसी तत्वदर्शी सन्त से जान"
गीता जी अध्याय 4 श्लोक 33 व श्लोक 34 

इसी प्रकार श्री शिव महापुराण पृष्ठ सं. 24 से 26 विद्ध्वेश्वर संहिता तथा पृष्ठ 110 अध्याय 9 रूद्र संहिता

में स्पष्ट प्रमाण है कि "पूर्ण परमात्मा कबीर जी ही पूजा के योग्य हैं तथा ब्रह्मा, विष्णु, शिव जी तो नाशवान प्रभु है उनकी भक्ति पूर्ण मोक्षदायक नही है।"

Kabir Is Supreme God


इन सब प्रमाणों से निष्कर्ष निकलता है कि कोई भी भक्ति साधना बिना गुरु के व्यर्थ है है और अगर गुरु भी पूर्ण नहीं है तो वो गुरु और उनके साधक दोनों ही नर्क के भागी होंगे!

आज के समय में कबीर साहेब जी वाला ज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज ही बता रहे हैं!

आज संत रामपाल जी महाराज ही विश्व में एक मात्र पूर्ण संत है जो सर्व शास्त्रों, गीता जी, वेदों, पुराणों, उपनिषदों एवं पवित्र कुरान और पवित्र बाइबिल तथा श्री गुरु ग्रंथ साहब जी में छुपे हुए गुढ रहस्यों को सर्व मानव समाज को प्रोजेक्टर के माध्यम से समझा रहे हैं!

यदि आप भी संत रामपाल जी महाराज जी के सत्संग सुनना चाहते हैं तो अवश्य देखे 'साधना' टी.वी. चैनल शाम 7:30 बजे से!



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