Who Is Real Human? वास्तव में मनुष्य कौन है?

वास्तव में मानव कहलाने योग्य कौन है ?

आज हम हमारे समाज को देखे तो पायेंगे कि मानव में मानवता का धीरे-धीरे ह्रास होता जा रहा है। मानव की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, भौतिक, एवं आध्यात्मिक स्थिति दिनों दिन घटती ही जा रही है। 

सब सांसारिक मोह-माया और पैसा कमाने के पीछे इतने गिर चुके है कि भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरी, चोरी, डकैती आदि गैर कानूनी अपराध करने से भी नहीं डरते है। 




वर्तमान में मनुष्यों में वासना, तृष्णा, लालसा की भुख इतनी बढ गई है कि समाज में हर समय चोरी करना, व्याभिचार, नशे करना, माँस खाना, बलात्कार, हत्या, दहेज हत्या, गाली गलौज, लड़ाई झगड़ो आदि जैसी कोई ना कोई नीच घटना घटित हो ही रही है!

ये ऐसे अपराध है जिन्हें सुनने मात्र से एक बार तो अच्छा भला इंसान भी अंदर तक सिहर उठे तो सोचिए ऐसे अपराधों को करने वाले क्या मानव कहलवाने के भी लायक है?

उनकी प्रवृत्ति तो अब असुर स्वभाव वाली हो चुकी है! ऐसे मनुष्यों को अगर कलियुगी राक्षस भी कहा जाये तो भी कम ही लगता है!

आज के समय में कोई संतुष्ट नहीं हैं। अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पाती है। 

ऐसा इसलिए है कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान ही नहीं है। 



सभी प्राणी यही चाहते हैं कि कोई भी कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले, पहनने को सुन्दर वस्त्र हो, रहने के लिए आलीशान भवन हो, कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न हो आदि परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है और न ही ऐसा संभव है।

क्योंकि यह लोक नाशवान है। इस लोक की हर वस्तु नाशवान है और इस लोक का राजा ब्रह्म काल (ज्योति निरंजन) है जो एक लाख मानव धारी सूक्ष्म शरीर को खाता है। उसने सब प्राणियों को कर्म-भर्म व पाप-पुण्य रूपी जाल में उलझा कर तीन लोक के पिंजरे में कैद किया हुआ है।
कबीर साहेब जी कहते हैं कि :--

"कबीर, तीन लोक पिंजरा भया, पाप पुण्य दो जाल।
सभी जीव भोजन भये, एक खाने वाला काल।।"

"गरीब, एक पापी एक पुन्यी आया, एक है सूम दलेल रे।
बिना भजन कोई काम नहीं आवै, सब है जम की जेल रे।।"


और मानवता के ह्रास का प्रमुख कारण तो ये है कि कभी परमात्मा से डरने वाली जीव आत्माऐं आज परमात्मा के ही विधान को तोडकर पैसे रूपी माया को ही सर्वोपरि मान बैठी है।

मानव की कभी ना खत्म होने वाली इच्छा के कारण ही आज मानव ने अपनी मानवता खो दी है।
कोई भी व्यक्ति जब तक परमात्मा के विधान से अपरिचित रहेगा तब तक उसे पाप कर्मो से डर नहीं होगा जिसके परिणामस्वरूप वह पाप करने से नहीं कतरायेगा।

इसीलिए जीवन में सर्वप्रथम एक आध्यात्मिक गुरू होना अति आवश्यक है। ताकि वह हमें पाप कर्मों से होने वाली हानि से परिचित करवाये। व शास्त्र के अनुसार सत्भक्ति बताकर सतज्ञान का उपदेश करावे।

वर्तमान में बहुत से धर्मगुरु, ऋषि, महन्त आदि गुरु पद पर बैठे हैं। जिससे यह पहचान करना मुश्किल है कि वास्तव में सच्चा सतगुरु कौन है जो मोक्ष की प्राप्ति करवा सकता है? 

जिसके वचनों में इतनी शक्ति हो जो हमें वास्तव में मानव बना दे और हमारे भीतर मानवता का संचार करे। 

तो इसके लिए हमारे पवित्र शास्त्र हमें मार्गदर्शन देते हैं।

श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 15 श्लोक 1 - 4, 16, 17 में कहा गया है जो संत इस संसार रूपी उल्टे लटके हुए वृक्ष के सभी विभाग बता देगा वह पूर्ण गुरु/सच्चा सद्गुरु है।

पूर्ण संत तीन प्रकार के मंत्रों को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन कबीर सागर ग्रंथ पृष्ठ 265 पर बोध सागर में मिलता है। गीता जी के अध्याय 17 श्लोक 23 व सामवेद संख्या 822 में मिलता है।

आज वर्तमान में इस पूरी पृथ्वी पर यह तत्वज्ञान केवल संत रामपाल जी महाराज जी ही बता रहे हैं...



संत रामपाल जी महाराज ही विश्व में एकमात्र ऐसे संत है जो शास्त्रों, वेदों, गीता जी, पवित्र कुरान शरीफ, पवित्र बाइबिल, गुरु ग्रंथ साहेब जी में वर्णित साधना को बता रहे है!

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखे 'साधना' चैनल शाम 7:30 बजे से!

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