गोवर्धन पूजा क्यों मनाई जाती है? (गोवर्धन पूजा : फायदा अथवा नुकसान)
गोवर्धन पूजा हिन्दुओं का एक मुख्य त्यौहार है जो इस वर्ष 15 नवम्बर 2020 (रविवार) को मनायी जायेगी!
हिन्दी वर्ष के अनुसार यह त्यौहार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।
सामान्य जानकारी :
गोवर्धन पूजा दिपावली के अगले दिन ही की जाती हैं! इस पूजा को अन्नकूट के नाम से भी जाना जाता हैं!
भारतीय लोकजीवन और संस्कृति में इस त्यौहार का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इस पर्व की अपनी मान्यता और लोककथा है।
मनुष्य का सीधा व आध्यात्मिक सम्बन्ध इस पर्व में प्रकृति के साथ दिखाई देता है।
गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की तथा गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।
शास्त्रों में विदित है कि जैसे नदियों में गंगा पवित्र है उसी प्रकार गाय पवित्र होती हैं।
जिस प्रकार देवी लक्ष्मी सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी स्वास्थ्य रूपी धन अपने दूध से प्रदान करती हैं इसी लिए गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है।
इनका बछड़ा भी खेतों में अनाज उगाने के काम आता हैं!
इस तरह गाय सम्पूर्ण मानव जाति के लिए परम आदरणीय है।
गौ माता के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन पर्वत की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की।
गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा :
बृज वासियों ने गायों के लिये हरे चारे और स्वयं के लिए पैदा हुऐ अन्न के फलस्वरूप इन्द्र की पूजा का मन बनाया परन्तु श्री कृष्ण जी के कहने पर उन सब ने इन्द्र की अराधना न कर के गोवर्धन पर्वत की पूजा की जिसे इन्द्र ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर बृज में मूसलाधार वर्षा शुरू हो दी!
तब देवराज इंद्र के अभिमान को तोड़ने के लिये श्री कृष्ण जी ने गोवर्धन पर्वत उठा लिया और सभी बृजवासियों को उसमें अपने गाय और बछडे़ समेत शरण लेने के लिए बुलाया।
इन्द्र कृष्ण की यह लीला देखकर और क्रोधित हुए फलत: वर्षा और तेज हो गयी।
तब श्री कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से कहा कि आप पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा नियत्रित करें और शेषनाग से कहा आप मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें।
इन्द्र लगातार 7 दिन तक मूसलाधार वर्षा करते रहे तब उन्हे एहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई मनुष्य नहीं हो सकता!
तब इन्द्र ब्रह्मा जी के पास पहुंचे! ब्रह्मा जी ने इन्द्र से कहा कि आप जिस कृष्ण की बात कर रहे हैं वह भगवान विष्णु के साक्षात अंश हैं!
यह सुनकर इन्द्र अत्यंत लज्जित हुए और श्री कृष्ण से कहा कि प्रभु मैं आपको पहचान न सका इसलिए अहंकारवश भूल कर बैठा। आप दयालु हैं इसलिए मेरी भूल क्षमा करें
तब श्री कृष्ण जी ने इन्द्र को क्षमा किया और वर्षा समाप्त हुई!
गोवर्धन पूजा का वर्तमान स्वरूप :
वर्तमान में इस दिन मार्गपाली, बलि पूजा आदि उत्सव भी मनाए जाते हैं।
इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है।
इस दिन गाय-बैल आदि पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनका पूजन किया जाता है।
इस दिन गौमाता को मिठाई खिलाकर उसकी आरती उतारते हैं तथा प्रदक्षिणा भी की जाती है।
कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाया जाता है जिन्हें 'छप्पन भोग' कहते हैं।
क्या गोवर्धन पूजा सही है? क्या इस पूजा से कोई लाभ भी है?
गौ माता सर्व मानव समाज के लिए आदरणीय है परन्तु वर्तमान समय में गाय को जिस प्रकार प्रताड़ित किया जा रहा है तथा माँस के लिए मारा जा रहा हैं वह कलयुग के मानव समाज की राक्षस प्रवृत्ति को बंया कर रहा हैं!
पूजा के नाम पर गाय, भेड़, बकरी की बलि देना, शास्त्रों के विरुद्ध साधना करना, ये सब व्यर्थ ही हैं!
क्योंकि गीता जी के अध्याय 16 श्लोक 23 में वर्णन है कि
"जो साधक शास्त्रविधि को त्यागकर अपनी इच्छा से
मनमाना आचरण करता है वह न सिद्धि को प्राप्त होता है न उसे कोई सुख प्राप्त होता है, न उसकी गति यानि मुक्ति होती है अर्थात् शास्त्र के विपरित भक्ति करना व्यर्थ है।"
यहाँ विचार करने योग्य बात ये भी है कि श्री कृष्ण जी स्वयं इन्द्र देव की अराधना करने के लिये मना कर रहे हैं क्योंकि श्री कृष्ण जी जानते है कि पूर्ण परमात्मा तो कोई और ही है जो वास्तव में अविनाशी है तथा पूजने योग्य है!
अर्थात् श्री कृष्ण जी भी शास्त्र विरूद्ध साधना के खिलाफ थे!
कबीर साहेब जी भी यही संदेश देते थे कि तीनों देवताओं ( ब्रह्मा, विष्णु, महेश ) से ऊपर भी एक पूर्ण परमात्मा हैं जो परमेश्वर कर्विदेव हैं उनकी भक्ति करो!
" भजन करो उस रब दा , जो दाता है कुल सब दा "
" गोवर्धनगिरी धारयो कृष्ण जी , द्रोणगिरी हनुमंत!
शेषनाग सब सृष्टि सहारी , इनमें कौन भगवंत!!"
तो सही पूजा क्या है? शास्त्र अनुरूप साधना कौन सी है?
इस का प्रमाण हम गीता जी और वेदों से लेते हैं 👇👇
यजुर्वेद के अध्याय नं. 29 के श्लोक नं. 25 (संत रामपाल जी महाराज द्वारा भाषा-भाष्य):-
"जिस समय पूर्ण परमात्मा प्रकट होता है उस समय सर्व ऋषि व सन्त जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमाना आचरण अर्थात् पूजा कर रहे होते हैं।
तब अपने तत्वज्ञान का संदेशवाहक बन कर स्वयं कबीर प्रभु ही आते हैं और शास्त्र अनुसार भक्ति देते हैं!"
वास्तविक भक्ति विधि के लिए गीता ज्ञान दाता प्रभु (ब्रह्म) किसी तत्वदर्शी की खोज करने को कहता है (गीता अध्याय 4 श्लोक 34)
गीता अध्याय 15 श्लोक 1
"गीता का ज्ञान सुनाने वाले प्रभु ने कहा कि ऊपर को पूर्ण परमात्मा आदि पुरुष परमेश्वर रूपी जड़ वाला नीचे को शाखा वाला अविनाशी विस्त्तारित, पीपल का वृक्ष रूप संसार है!
जिसके छोटे-छोटे हिस्से या टहनियाँ पत्ते कहे हैं उस संसार रूप वृक्ष को जो सर्वांगों सहित जानता है वह पूर्ण ज्ञानी अर्थात् तत्वदर्शी संत है।"
गीता अध्याय 15 के श्लोक 4 में कहा है कि
"उस तत्वदर्शी संत के मिल जाने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद की खोज करनी चाहिए
अर्थात् उस तत्वदर्शी संत के बताए अनुसार साधना करनी चाहिए जिससे पूर्ण मोक्ष(अनादि मोक्ष) प्राप्त होता है।
गीता ज्ञान दाता ने कहा है कि मैं भी उसी की शरण में हूँ।"
वर्तमान समय में वह तत्वदर्शी संत केवल "संत रामपाल जी महाराज" ही हैं जो कबीर साहेब जी वाला ज्ञान और शास्त्रों के अनुरूप साधना करवा रहे हैं!
अतः आप सब एक बार संत रामपाल जी महाराज का ज्ञान अवश्य सुने और उन से नाम दीक्षा लेकर मोक्ष के भागी बने!
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